मंगलौर की घटना में उत्तराखंड हाई कोर्ट की एकलपीठ ने इस मामले की सुनवाई के दौरान पुलिस की कार्यप्रणाली पर खड़े किये गंभीर सवाल,,,

मंगलौर की घटना में उत्तराखंड हाई कोर्ट की एकलपीठ ने इस मामले की सुनवाई के दौरान पुलिस की कार्यप्रणाली पर खड़े किये गंभीर सवाल,,,

उत्तराखंड हाई कोर्ट की एकलपीठ ने इस मामले की सुनवाई के दौरान पुलिस की कार्यप्रणाली पर खड़े किये गंभीर सवाल,,,
नैनीताल:
मंगलौर कोतवाली क्षेत्र में जमीन विवाद को लेकर हुई हिंसक झड़प, जिसमें एक व्यक्ति की मौत और सात अन्य घायल हुए थे, अब हाईकोर्ट की निगरानी में आ गई है। उत्तराखंड हाई कोर्ट की एकलपीठ ने इस मामले की सुनवाई के दौरान पुलिस की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं।
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न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की एकलपीठ ने पूछा कि जब मामला एक ही घटना से जुड़ा है, तो दो विवेचकों की नियुक्ति क्यों की गई?
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सुनवाई के दौरान एक विवेचक ने बताया कि उन्होंने मामले में चार्जशीट दाखिल कर दी है, जबकि दूसरे ने कहा कि उन्होंने फाइनल रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी है। इस विरोधाभास पर अदालत ने कड़ा रुख अपनाया और सवाल किया कि आखिर पुलिस ने इस गंभीर वारदात में एफआईआर क्यों नहीं दर्ज की, जबकि एक व्यक्ति की मौत हुई और कई लोग गंभीर रूप से घायल हुए।
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अदालत ने पूछा कि जब घटना में लोगों के सिर पर गहरी चोटें आईं और उन्हें अस्पताल में भर्ती करना पड़ा, तब भी आईपीसी की धारा 307 (हत्या के प्रयास) के तहत मुकदमा क्यों नहीं दर्ज किया गया? इतना ही नहीं, अदालत ने यह भी सवाल उठाया कि एक पक्ष की प्राथमिकी दर्ज हुई, लेकिन दूसरे पक्ष की क्यों नहीं? जबकि दोनों पक्षों की ओर से क्रॉस एफआईआर दर्ज की गई हैं।
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यह मामला 23 सितंबर 2024 को घटित हुआ था, जब मृतक आज़ाद के परिजनों ने पुलिस को तहरीर दी कि आज़ाद का जमीनी विवाद गांव के जोगिंदर नामक व्यक्ति से चल रहा था। जब आज़ाद अपने खेतों में पानी देने गया तो जोगिंदर और उसके साथियों ने धारदार हथियारों से हमला कर दिया। सिर पर कुल्हाड़ी लगने से आज़ाद की मौत हो गई। हमले की सूचना मिलने पर जब परिजन घटनास्थल पहुंचे तो उन पर भी हमला किया गया, जिसमें कई लोग घायल हो गए।
आरोप है कि पुलिस ने थाने में रिपोर्ट दर्ज नहीं की, जिसके बाद पीड़ित पक्ष ने जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत की। मजिस्ट्रेट के आदेश पर आईपीसी की धारा 156(3) के तहत मुकदमा दर्ज हुआ।
मंगलवार को हाई कोर्ट में आरोपित आदित्य सहित अन्य की जमानत याचिकाओं पर सुनवाई हुई। अदालत ने पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाते हुए दो जुलाई को विस्तृत स्पष्टीकरण मांगा है।

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