एलआईयू की रिपोर्ट दरकिनार कर निर्दलीय विधायक उमेश कुमार व बसपा नेत्री उनकी पत्नी ने नियम विरुद्ध कैसे किया सरकार से सुरक्षा अमला प्राप्त,,,हाइकोर्ट में याचिका मंजूर
निर्दलीय विधायक उमेश व उनकी पत्नी भावी बसपा लोकसभा प्रतियाशी सोनिया शर्मा को पुलिस अमला प्रदान कराने में किस अधिकारी की रही मेहरबानी ओर क्यों,,,याचिकाकर्ता
रुड़की।
अनवर राणा।
माननीय हाइकोर्ट नैनीताल में हरिद्वार निवासी याचिकाकर्ता ने जनहित याचिका के जरिये खानपुर विधायक पर अपराधी होने के बावजूद सरकार द्वारा दिया गया भारी भरकम सुरक्षा अमला को लेकर जांच कराकर कार्यवाही की मांग की गई थी।जिसपर हाइकोर्ट ने सुनवाई कर 29 मार्च को सरकार व शासन से तीन हफ्ते के अंदर जवाब दाखिल करने के नोटिस भेज दिये गए थे।याचिका कर्ता का कहना है कि वरिष्ठ चर्चित IPS जो शासन में विशेष जगह व पद पाने के बाद मुख्यमंत्री के बेहद क़रीब हुए अधिकारी के रहमोकरम पर उमेश की पत्नी सोनिया शर्मा को दो गनर पूर्व में ही दिलवाए गए थे । विधायक बनने से पूर्व इन दो गनर को साथ लेकर उमेश हरिद्वार के खानपुर क्षेत्र में अपनी हवाबाज़ी में लग गया था। खानपुर में अपने फ़र्ज़ी विवाद व ख़तरा दिखाकर उमेश कुमार ने सरकार को कई चिट्ठियां लिखीं इन चिट्ठियों में इन साहब ने बताया कि साहब मेरी जान को ख़तरा है। मुख्यमंत्री के बेहद नज़दीक विशेष पद प्राप्त IPS अधिकारी की दोस्ती की चर्चा भी जगजाहिर रही और उनकी मेहरबानी ने उमेश बाबू को भी सुरक्षा प्रदान करवा दी। इसके बाद उमेश कुमार खानपुर से निर्दलीय विधायक बन गए, उसके बाद तो जैसे उमेश भारी भरकम सुरक्षा के प्रबल दावेदार बन गए। लेकिन जनता के पैसों से चलने वाला पुलिस अमले का अगर बेजा इस्तेमाल होगा तो जनता सवाल पूछेगी? मान लीजिए सरकार में बैठे कुछ अधिकारी उमेश कुमार की मेहरबानियों से दबे हो या फिर उसके द्वारा बनायी गई पूर्व की स्टिंग सीडीयों से ख़ौफ़ में हो या फिर उमेश कुमार द्वारा दी गई ख़ास और एक्स्ट्रा सर्विसेज़ से ओब्लाइज होने की चर्चा भी रही है , परन्तु प्रदेश और देश नियम कानून व संविधान से चलता है । याचिकाकर्ता ने पत्रकारों को बताया कि कई चिट्ठियां देने के बाद भी जब शासन प्रशासन द्वारा नहीं सुनी गई तो याचिकाकर्ता उच्च न्यायालय जाने के लिए मजबूर हो गया। न्यायालय ने अब इस याचिका को मंज़ूर करते हुए 29 मार्च को शासन से लेकर प्रशासन तक सब को नोटिस भेज तीन हफ़्ते में जवाब माँगा जा चुका है।
अब शासन को ये जवाब देना पड़ेगा कि एक अपराधी को आख़िर इतनी सुरक्षा कैसे प्रदान की गई ओर किस अधिकारी के कहने पर यह मेहरबानी की गई। पुलिस और LIU द्वारा किसी प्रकार का कोई भी ख़तरा न होने की रिपोर्ट देने के बावजूद भी किसकी स्वीकृति से यह कार्य किया गया? इस याचिका के बाद से शासन से लेकर प्रशासन तक सब में हड़कंप मचा हुआ है सब अपना अपना पल्ला झाड़ कर दाएँ बाएँ झांक रहे है। हालाँकि इस पूरे मामले का कोर्ट ने संज्ञान ले लिया है। अब देखना यह होगा कि आने वाले समय में उमेश कुमार की भौकाली, चमकाने वाली चाक चौबंद सुरक्षा रहती है या फिर हट जाती है,,,?