(भ्र्ष्टाचार)उत्तराखंड वक्फबोर्ड गठन से आजतक वक्फ संपत्तियों के प्रशासन के संबंध में वार्षिक रिपोर्ट तैयार नहीं कर विधानसभा के समक्ष नहीं हुई प्रस्तुत,,,
उत्तराखंड:
पिछले 20 सालों से उत्तराखंड वक्फबोर्ड की वार्षिक रिपोर्ट विधानसभा के समक्ष नही रखी गई है। ये खुलासा मांगी गई सूचना के अधिकार में हुआ है। दिलचस्प बात ये है कि उत्तराखंड वक्फबोर्ड गठन से आजतक वक्फ संपत्तियों के प्रशासन के संबंध में वार्षिक रिपोर्ट बनी ही नही। दरअसल काशीपुर निवासी एड. नदीम उद्दीन ने वक्फ अधिनियम 1995 की धारा 98 के अंतर्गत उत्तराखंड वक्फबोर्ड से वार्षिक रिपोर्ट बनाने व वार्षिक रिपोर्ट विधानसभा के समक्ष रखने संबंधित सूचना मांगी थी। सूचना उपलब्ध ना होने पर प्रथम अपील व उत्तराखंड सूचना आयोग को द्वित्तीय अपील की गई। द्वित्तीय अपील संख्या 38708 में सूचना आयुक्त अर्जुन सिंह के आदेश 5 दिसंबर 2023 के बाद उत्तराखंड वक्फबोर्ड के लोक सूचना अधिकारी/रिकॉर्ड कीपर सोहन सिंह रावत ने 21 दिसंबर को सूचना उपलब्ध कराई। जिसमे आरटीआई कार्यकर्ता नदीम को उपलब्ध कराई गई सूचना में बताया गया कि प्रदेश के वक्फबोर्ड व वक्फ संपत्तियों के प्रशासन के संबंध में बोर्ड गठन से आजतक वार्षिक रिपोर्ट नही बनी है साथ ही वार्षिक रिपोर्ट बनाकर विधानसभा के समक्ष नही रखी गई है। आरटीआई कार्यकर्ता नदीम ने बताया कि वक्फ अधिनियम 1995 धारा 98 के अनुसार राज्य सरकार वित्तीय वर्ष की संपत्ति के पश्चात यथाशीघ्र राज्य वक्फबोर्ड के कार्यकरण और प्रशासन व उस वर्ष के दौरान राज्य में वक्फों के प्रशासन की बाबत एक साधारण वार्षिक रिपोर्ट तैयार करायेगी और उसे विधानसभा के समक्ष रखवाएगी।नदीम को उपलब्ध अन्य सूचना के अनुसार राज्य में पंजीकृत वक्फ की संख्या कुल 3004 है जिसमें 2091 सुन्नी वक्फ व 13 शिया वक्फ शामिल है। वक्फ बोर्ड को सम्पत्तियों में हुई आय से अंशदान के रूप वित्तीय वर्ष 2022-23 में सुन्नी वक्फ सम्पत्तियों से केवल 22 लाख 48 हजार 805 रू. व शिया वक्फ सम्पत्तियों से 13790 रू. की धनराशि हासिल हुई है। नदीम के अनुसार राज्य द्वारा वक्फ बोर्ड व सम्पत्तियों के प्रशासन की वार्षिक रिपोर्ट वक्फ बोर्ड के 2003 में गठन से 2023 तक न बनाना अत्यंत चिन्ताजनक व आश्चर्यजनक है। इस रिपोर्ट के बनाने, सार्वजनिक होने व विधानसभा के समक्ष रखने से वक्फ सम्पत्तियों पर हो रहे अतिक्रमण को जहां प्रभावी ढंग से रोका जा सकता था और वक्फ सम्पत्तियों से होने वाली आय को बढ़ाया जा सकता था, जो वक्फ अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार मुस्लिमों और अन्य लोगों के सार्वजनिक हितों सहित लोक कार्यों में खर्च की जा सकती थी।उत्तराखंड: पिछले 20 सालों से उत्तराखंड वक्फबोर्ड की वार्षिक रिपोर्ट विधानसभा के समक्ष नही रखी गई है। ये खुलासा मांगी गई सूचना के अधिकार में हुआ है। दिलचस्प बात ये है कि उत्तराखंड वक्फबोर्ड गठन से आजतक वक्फ संपत्तियों के प्रशासन के संबंध में वार्षिक रिपोर्ट बनी ही नही। दरअसल काशीपुर निवासी एड. नदीम उद्दीन ने वक्फ अधिनियम 1995 की धारा 98 के अंतर्गत उत्तराखंड वक्फबोर्ड से वार्षिक रिपोर्ट बनाने व वार्षिक रिपोर्ट विधानसभा के समक्ष रखने संबंधित सूचना मांगी थी। सूचना उपलब्ध ना होने पर प्रथम अपील व उत्तराखंड सूचना आयोग को द्वित्तीय अपील की गई। द्वित्तीय अपील संख्या 38708 में सूचना आयुक्त अर्जुन सिंह के आदेश 5 दिसंबर 2023 के बाद उत्तराखंड वक्फबोर्ड के लोक सूचना अधिकारी/रिकॉर्ड कीपर सोहन सिंह रावत ने 21 दिसंबर को सूचना उपलब्ध कराई। जिसमे आरटीआई कार्यकर्ता नदीम को उपलब्ध कराई गई सूचना में बताया गया कि प्रदेश के वक्फबोर्ड व वक्फ संपत्तियों के प्रशासन के संबंध में बोर्ड गठन से आजतक वार्षिक रिपोर्ट नही बनी है साथ ही वार्षिक रिपोर्ट बनाकर विधानसभा के समक्ष नही रखी गई है। आरटीआई कार्यकर्ता नदीम ने बताया कि वक्फ अधिनियम 1995 धारा 98 के अनुसार राज्य सरकार वित्तीय वर्ष की संपत्ति के पश्चात यथाशीघ्र राज्य वक्फबोर्ड के कार्यकरण और प्रशासन व उस वर्ष के दौरान राज्य में वक्फों के प्रशासन की बाबत एक साधारण वार्षिक रिपोर्ट तैयार करायेगी और उसे विधानसभा के समक्ष रखवाएगी।नदीम को उपलब्ध अन्य सूचना के अनुसार राज्य में पंजीकृत वक्फ की संख्या कुल 3004 है जिसमें 2091 सुन्नी वक्फ व 13 शिया वक्फ शामिल है। वक्फ बोर्ड को सम्पत्तियों में हुई आय से अंशदान के रूप वित्तीय वर्ष 2022-23 में सुन्नी वक्फ सम्पत्तियों से केवल 22 लाख 48 हजार 805 रू. व शिया वक्फ सम्पत्तियों से 13790 रू. की धनराशि हासिल हुई है। नदीम के अनुसार राज्य द्वारा वक्फ बोर्ड व सम्पत्तियों के प्रशासन की वार्षिक रिपोर्ट वक्फ बोर्ड के 2003 में गठन से 2023 तक न बनाना अत्यंत चिन्ताजनक व आश्चर्यजनक है। इस रिपोर्ट के बनाने, सार्वजनिक होने व विधानसभा के समक्ष रखने से वक्फ सम्पत्तियों पर हो रहे अतिक्रमण को जहां प्रभावी ढंग से रोका जा सकता था और वक्फ सम्पत्तियों से होने वाली आय को बढ़ाया जा सकता था, जो वक्फ अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार मुस्लिमों और अन्य लोगों के सार्वजनिक हितों सहित लोक कार्यों में खर्च की जा सकती थी।