शहर में घूमती हजारों ई-रिक्शाओं के बीच “उधार की सांस” यानि ऑक्सीजन सिलेंडर लगाकर ई रिक्शा चलाते गुल मोहसिन,,,
रुड़की:
जिंदगी हर किसी के लिए आसान नहीं होती। मुश्किल आने पर ज्यादातर लोग सहारा ढूंढने निकल पड़ते हैं। चंद ऐसे खुद्दार लोग होते हैं, जो अपने बल पर संघर्ष का रास्ता अपनाते हैं। शिक्षानगरी रुड़की निवासी गुल मोहसिन भी उन्हें लोगों में से एक हैं। अमूमन लोग अपना घर चलाने के लिए मेहनत मजदूरी करते हैं, लेकिन 62 साल के गुल मोहसिन घर चलाने के साथ-साथ अपनी जिंदगी का पहिया चलाने के लिए भी मेहनत करते हैं। शहर में घूमती हजारों ई-रिक्शाओं के बीच “उधार की सांस” यानि ऑक्सीजन सिलेंडर लगाकर ई रिक्शा चलाते गुल मोहसिन अलग से नजर आ जाते हैं। उन्हें देखकर सवाल तो हर किसी के मन में उठता है। अलबत्ता आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में किसको दूसरों का दर्द जानने की फुर्सत है। आपके प्रिय समाचार पोर्टल RBNNewschainal✍️ की टीम ने जब गुल मोहसिन से बात की तो जिंदगी की जद्दोजहद के असल मायने निकाल कर सामने आए। दोनों फेफड़े खराब होने के चलते गुल मोहसिन के लिए दो वक्त की रोटी के साथ-साथ अपनी सांसों के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर का इंतजाम भी करना पड़ता है। कम मुश्किल वाले लोग भी आपको सड़क किनारे हाथ फैलाते हुए नजर आ जाएंगे, मगर गुल मोहसिन की खुद्दारी और मेहनतकशी के आगे मुश्किलें भी शर्मिंदा हैं। हालांकि, सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं की भीड़ में किसी ने आगे बढ़कर उनका दुख और दर्द बांटने की ज़हमत भी नहीं उठाई।
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कोरोना काल से बदल गई जिंदगी……
रुड़की के पश्चिमी अंबर तालाब निवासी गुल मोहसिन पहले तो ट्रेलर का काम करते थे और कपड़े सिलचर अपने परिवार व बच्चों को पालते आए हैं। 2009 में उन्हें हार्ट अटैक आया। मगर कोरोना काल के बाद तो जैसे जिंदगी परेशानियों से घिरती चली गई। दोनों फेफड़ें जवाब दे गए। जिस कारण पैर से सिलाई मशीन चलाना तो दूर पैदल चलना भी मुश्किल हो गया। डॉक्टरों का कहना था कि जब तक जिंदगी है, सिलेंडर से ऑक्सीजन लेनी पड़ेगी। गुल मोहसिन ने हार नहीं मानी बल्कि साल’भर पहले लोन लेकर ई रिक्शा का हैंडल थामा। काम मंदा होने पर किस्त अदा करना भी मुश्किल हो चला, क़िस्त चुकाने के लिए थोड़ी ज्यादा मेहनत कर रहे हैं, लेकिन किसी से कोई शिकवा नहीं। तीन बेटे और दो बेटियां हैं, सब की शादी हो चुकी हैं। गुल मोहसिन अपनी पत्नी के साथ रहते हैं।
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हम और आप मिलकर कर सकते हैं मदद……
गुल मोहसिन बेशक खुद्दार इंसान हैं और खुद मेहनत कर अपनी रोजी-रोटी चला रहे हैं। रोजाना 400 से ₹500 तक की आमदनी में अपना और पत्नी के खाने-पीने के खर्च अलावा ई-रिक्शा के किस्त भी निकालना होती है। सिलेंडर और दवाइयां का इंतजाम करना रोटी से भी ज्यादा जरूरी है। गुल मोहसिन अपने मुंह से नहीं कहते। लेकिन हम और आप चाहें तो मिलकर उनकी मदद कर सकते हैं। एक इंसान का दूसरे इंसान पर इंसानियत के नाते हक है। इस लिहाज़ से “*RBNNEWS chainal* अपने स्तर से मदद करने के साथ-साथ सरकारी अधिकारी, जनप्रतिनिधि और समाजसेवी संस्थाओं से भी यह अपील करता है कि ऐसे खुद्दार इंसान की मदद के लिए हाथ आगे बढ़ाएं। भीख मांगने वाले लाचार और मजबूर लोगों की तमाम लोग मदद करते हैं। मेहनत करने वाले खुद्दार लोगों का मनोबल बढाना भी जरूरी हैं। आप चाहे तो गुल मोहसिन के गूगल पे नंबर 9449535623 पर अपनी हैसियत के मुताबिक मदद कर सकते हैं। या उनसे संपर्क कर उनका दर्द बांट सकते है।