नाम की आस्था: वर्तमान सज्जादानशीन के खानदान से सबसे प्रथम सज्जादा गद्दीनशीन मरहूम शाह अब्दुर्रहीम के कदीमी घर से उठती है मेहदी डोरी,,,
पिछले कुछ सालों से कदीमी घर को वर्तमान मकान स्वामी के नाम से प्रचलित करने की आखिर क्यों पड़ रही जरूरी..
कलियर:
अनवर राणा।
हज़रत मखदूम अलाउद्दीन अली अहमद साबिर पाक (रह.) का सालाना उर्स विभिन्न रसुमात के साथ संपन्न होता है। उर्स का आगाज झंडा कुशाई की रस्म के बाद देर रात होने वाली मेहंदी डोरी की रस्म के साथ होता है। चांद नजर आने के बाद मेहंदी डोरी की रस्म अदा की जाती है। मेहंदी डोरी को एक जुलूस के रूप में सिर पर थाल लेकर अकीदतमंद लोग दरगाह शरीफ आते है और मेहंदी डोरी पेश करते है, इसके बाद साबिर पाक के सालाना उर्स का विधिवत आगाज हो जाता है। लेकिन कुछ सालों से मेहंदी डोरी की रस्म में एक नई परम्परा ने जन्म लिया है, बाकायदा मेहंदी डोरी से पहले प्रेस कांफ्रेंस या बयान जारी कर ये जानकारी दी जाने लगी है कि ये कदीमी घर यानी पुराना घर वर्तमान में मरहूम नन्हे मियां का मकान है और मरहूम नन्हे मियां के मकान से मेहंदी डोरी की रस्म शुरू होती है। अब सवाल ये उठता है कि जो परम्परा सज्जादा परिवार के प्रथम सज्जादानशीन मरहूम शाह अब्दुर्रहीम के समय से चली आरही हो अब उसमे वर्तमान के नाम की क्या ज़रूरत आन पड़ी। क्यों कदीमी घर को वर्तमान मकान स्वामी के नाम पर प्रचलित किया जा रहा है, इसके पीछे की कहानी क्या है ये तो सज्जादानशीन परिवार ही जाने, लेकिन यहां ये बात भी गौर करने लायक है कि ये मामला चंद सालों से शुरू हुआ है। बहरहाल उर्स की रसुमात जब-जब और जहां जहां से होनी है वो तो होंगी ही लेकिन उसमें अपने नाम को प्रचलित करना कही न कही “नाम की आस्था” दर्शाता है। बता दे कि आज यदि चांद दिखाई देता है तो बाद नमाज ईशा मेहंदी डोरी की रस्म पुरानी परम्परा के मुताबिक़ अदा की जाएगी।