कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने एक बार फिर संगठन की कमजोरी को लेकर खड़े किये सवाल,,,

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने एक बार फिर संगठन की कमजोरी को लेकर खड़े किये सवाल,,,

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने एक बार फिर संगठन की कमजोरी को लेकर खड़े किये सवाल,,,
हरिद्वार:
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने एक बार फिर संगठन की कमजोरी को लेकर सवाल खड़े किए हैं। चुनाव परिणाम आने के बाद अक्सर संगठन को निशाने पर लेने वाले हरीश रावत इस बार भी उसी राह पर हैं। लेकिन बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या संगठन की कमजोरी के लिए सिर्फ पार्टी पदाधिकारी जिम्मेदार हैं, या फिर खुद हरीश रावत का रवैया भी सवालों के घेरे में है?हरीश रावत का संगठन को मजबूत करने या फिर इस स्थिति में पहुंचाने में कितना योगदान है..? सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं कि हरीश रावत की विधायक बेटी अनुपमा रावत खुद संगठन को ठेंगे पर रखती आई है। जबकि वह खुद संगठन की बदौलत ही दिग्गज नेता को हराकर विधायक बनी है।
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हरीश रावत के निशाने पर रहे हैं प्रदेश अध्यक्ष
हरीश रावत के 2007 में प्रदेश अध्यक्ष पद से हटने के बाद लगभग हर प्रदेश अध्यक्ष उनके निशाने पर रहे हैं। हरीश रावत ने गाहे-बगाहे उनके खिलाफ बयानबाजी की, चाहे वह किसी भी गुट से रहे हों।
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बेटी को लेकर भी उठ रहे सवाल
हरीश रावत की बेटी अनुपमा रावत हरिद्वार ग्रामीण सीट से कांग्रेस की विधायक हैं, लेकिन सवाल उठ रहे हैं कि उनकी नजर में संगठन की कितनी वैल्यू है? उनके फ्लेक्स और बैनरों में प्रदेश और राष्ट्रीय नेताओं के फोटो तो होते हैं लेकिन जिला अध्यक्ष और ब्लॉक अध्यक्ष के फोटो तक नहीं होते। संगठन के किसी भी कार्यक्रम में उनकी सक्रिय भागीदारी नहीं देखी जाती। इतना ही नहीं, अपने व्यक्तिगत आयोजनों में भी संगठन के नेताओं को न्योता देना जरूरी नहीं समझा जाता। ऐसे में क्या हरीश रावत को संगठन को मजबूत करने के लिए अपनी ही बेटी को नसीहत नहीं देनी चाहिए?
चुनावी हार-जीत और संगठन की भूमिका
2017 में जब हरीश रावत हरिद्वार ग्रामीण से खुद चुनाव हारे थे, तब क्या संगठन कमजोर था? और जब 2022 में लक्सर विधानसभा सीट पर कांग्रेस की जमानत जब्त हो गई, तब भी क्या संगठन जिम्मेदार था? लेकिन लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 3000 वोटों से जीत दर्ज की, तो उसमें संगठन की मेहनत भी रही होगी।
हाल ही में हुए नगर पालिका और नगर पंचायत चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन पिछले चुनाव की तुलना में बेहतर रहा है। हालांकि, नगर निगम में कांग्रेस को कुछ नुकसान हुआ, लेकिन सवाल यह है कि नगर निगम के टिकट बंटवारे में हरीश रावत सहित कई बड़े नेताओं की भूमिका थी। ऐसे में संगठन की कमजोरी की बात करना कितना तर्कसंगत है?
क्या संगठन पर सवाल उठाना सही है?
हरीश रावत कांग्रेस के सबसे अनुभवी नेताओं में से एक हैं, लेकिन क्या हर चुनाव के बाद संगठन को कटघरे में खड़ा करना सही रणनीति है? क्या खुद की भूमिका और पार्टी के प्रति योगदान की समीक्षा करने की जरूरत नहीं है?
इस बयान के बाद उत्तराखंड कांग्रेस में एक बार फिर गुटबाजी तेज होने की संभावना है। पार्टी के भीतर इस बात की चर्चा है कि हरीश रावत को संगठन पर सवाल उठाने की बजाय उसे मजबूत करने के लिए खुद पहल करनी चाहिए।

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