शबेबरात के दिन हमें फिजूल खर्च के कामों और गुनाहों से बचकर अल्लाह की इबादत चाहिए करनी,,,
रुड़की।
मौलाना अशरफ अब्बास ने शबेबरात को इबादत की रात करार देते हुए कहा कि इस रात को हमें फिजूल खर्च के कामों और गुनाहों से बचकर अल्लाह की इबादत करनी चाहिए।जामा मस्जिद में बाद नमाजे ईशा शबेबरात की फजीलत बयान करते हुए उन्होंने कहा कि अल्लाह ताला अपने बंदों को जहन्नुम से निजात दिलाता है और हर मुसीबत जदा इंसान की मुसीबत को दूर फरमाता है और रिज्क में बरकत अता फरमाता है।मुसलमानों को चाहिए कि इस शबेबरात में शरियत के मुताबिक ही कब्रिस्तान जाएं और अपने मरहूमिन के लिए दुआ-मगफिरत करें।उन्होंने बताया कि पन्द्रह शाबान की रात शबेबरात का अर्थ होता है,मुक्ति की रात,क्योंकि इस रात में की गई तौबा कबूल होती है और अल्लाह ताला रहमत व नेकियों के दरवाजे अपने बंदों के लिए खोल देते हैं।जामा मस्जिद के मुफ्ती मोहम्मद सलीम ने कहा कि इस रात मुस्लिम मोहल्लों और कब्रिस्तान में खाने-पीने का दौर होता है।मुसलमान के मोहल्ले में देर रात तक चहल पहल रहती है,जबकि यह रात इबादत की रात है,इसलिए इस रात को सिर्फ इबादत में ही गुजरानी चाहिए।कारी मोहम्मद शमीम ने मुसलमानों से अपील करते हुए कहा कि जहां तक हो सके घरों में ही रहे और बिला जरूरत मोहल्ले और गलियों में ना घूमे।उन्होंने कहा कि इस्लाम इस बात की इजाजत नहीं देता कि हम इस इबादत की रात में जश्न मनाएं,इसलिए घरों और मस्जिदों में रहकर ही इबादत की जानी चाहिए।मौलाना अजहर उल हक ने कहा कि शबेबारात को बिदत या गुनाहों की रात बनाकर अल्लाह को नाराज ना करें,बल्कि अल्लाह की रजा के लिए अल्लाह के हुक्म और नबी के बताए तरीके को अमल में लाएं।देर रात तक जामा मस्जिद में इबादत तथा नमाजे अदा की गई तथा अंत में कौम और मुल्क की तरक्की के साथ ही अमन-शांति और खुशहाली की दुआ मांगी गई।इस दौरान मुफ्ती मोहम्मद नाजिम,मौलाना मोहम्मद सालिम अशरफ आदि ने भी शबेबरात की विशेषताओं पर प्रकाश डाला।कारी मोहम्मद शाबान ने तिलावते पाक पेश की।