*करोड़ो के ठेके कौड़ियों के भाव,, दरगाह दफ्तर और ठेकेदारों की सांठगांठ के चलते दरगाह की आय को नुकसान,,*
पिरान कलियर!
अनवर राणा!
उत्तराखंड वक्फबोर्ड की सबसे अधिक आय वाली दरगाह को नुकसान पहुँचाने का जो मंसूबा दरगाह दफ्तर और ठेकेदारों ने मिलकर बुना है वो अब जगज़ाहिर होने लगा है, करोड़ो के वार्षिक ठेकों को कौड़ियों के भाव घसीटा जा रहा है, इसके पीछे का खेल ठेकेदार और दरगाह दफ्तर स्टॉफ अपने उच्चाधिकारियों को गुमराह कर खेल रहे है। ताजा मामला वार्षिक ठेकों का है, जो 31 मार्च तक हो जाने चाहिए थे लेकिन दरगाह दफ्तर अधिकारियों और ठेकेदारों की मिलीभगत के चलते जो आजतक नही हो पाए, इसका खुलासा आज टेंडर खरीदारी में सामने आया है, जहां कलियर दरगाह के ठेके लेने के लिए ठेकेदार जान फूंक देते थे उन्ही ठेकेदारों ने आज टेंडर लेना तक गवारा नही किया, ठेकों से सम्बंधित टेंडर बिकने का समय आज 5 बजे तक था, लेकिन दरगाह दफ्तर स्टाफ और ठेकेदारों की सांठगांठ के चलते मात्र एक टेंडर जुटे रखाई पर खरीदा गया, जबकि एक ठेके पर कम से कम 3 टेंडर खरीदे जाना अनिवार्य है अन्यथा ठेके की नीलामी कैंसिल करनी पड़ती है। और हुआ भी यही दरगाहदफ्तर स्टॉफ और ठेकेदार एक बार फिर अपने मंसूबे में कामयाब हुए और एक बार फिर ठेकों की नीलामी प्रक्रिया निरस्त हो गयी।
जानकारी के अनुसार इस वर्ष के वार्षिक ठेके दरगाह दफ्तर स्टॉफ और ठेकेदारों की मिलीभगत की भेट चढ़ गए, 31 मार्च को पूर्व के ठेकों का समय पूरा होने पर इस वर्ष ठेके होने थे लेकिन उस समय ठेकेदारों और दरगाह दफ्तर वालो ने अपने उच्चाधिकारियों को गुमराह करते हुए आचारसहिंता का बहाना बनाते हुए उक्त ठेकों को बिना सिक्योरिटी के ही डेलीबेसिस पर दे दिए, और जब आचार सहिंता समाप्त हुई तो ठेकेदारों और दरगाह दफ्तर वालो ने सांठगांठ कर ठेकों को ऐसे ही चलाए जाने का मंसूबा तैयार किया, ठेकों की नीलामी के लिए पहले अखबारों में सूचना प्रसारित की गयी थी, जिसके बाद एक भी टेंडर ना बिकने के कारण ठेके नीलम नही हो पाए थे, इसके बाद कुछ दिन पहले फिर दोबारा से अखबारों में ठेके देने के लिए सूचना प्रसारित की गयी, आज ब्रस्पतिवार को टेंडर बेचे जाने की प्रक्रिया शुरू की जिसका समय शाम 5 बजे तक रखा गया,लेकिन फिर वही हुआ, टेंडर लेने के लिए कोई भी ठेकेदार आगे नही आया, मात्र एक टेंडर जुता रखाई वाले ठेके पर खरीदा गया, जो सोची समझी साजिश के तहत हुआ, क्योंकि ठेकेदार ओर दरगाह दफ्तर वाले जानते है की एक ठेके पर कम से कम 3 टेंडर खरीदे जाने अनिवार्य है। अब सवाल ये उठता है कि आखिर ठेकेदार टेंडर क्यों खरीदना नही चाहते, जवाब एक दम स्पष्ट है, दरगाह दफ्तर और ठेकेदार सांठगांठ कर चुके है, क्योंकि कुछ ठेकों पर दरगाह कर्मी काबिज होकर वसूली कर रहे है और कुछ ठेके ठेकेदारों को डेलीबेसिस पर दिए गए है वो भी बिना सिक्योरिटी जमा किए, ऐसे में ना तो ठेकेदारों को दिक्कत है और ना ही दरगाह दफ्तर वालो को, नुकसान सिर्फ दरगाह की आय को है, जिससे ना तो दरगाह दफ्तर को कोई लेंना देना है और ना ही ठेकेदारों को। लेकिन एक बात साफ है दरगाह दफ्तर वाले अपने
*उच्चाधिकारियों मुख्य कार्यपालक अधिकारी वक्फ बोर्ड व दरगाह प्रशासक ज्वाइंट मजिस्ट्रेट रुड़की जो दोनों ही अधिकारी आई ए एस हैं दरगाह के मामलों में अच्छा खासा गुमराह कर रहे है, क्योंकि जवाब देही उन्ही दोनों आई ए एस अधिकारियों की है।*