सौभाग्य भगत एडवोकेट की याचिका पर हाईकोर्ट के तीन न्यायाधीशों की पीठ ने बहुमत के आधार पर दिया महत्वपूर्ण निर्णय ,,,
चार्जशीट दाखिल होने के बाद भी आरोपी को मिल सकेगी अग्रिम जमानत,,,
हरिद्वार:
अनवर राणा।
कांग्रेस नेत्री पूनम भगत की बहू यशिका भगत की दहेज हत्या के चर्चित मामले में मृतका के आरोपी देवर सौभाग्य भगत एडवोकेट की याचिका पर हाईकोर्ट के तीन न्यायाधीशों की पीठ ने बहुमत के आधार पर महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। जिसके तहत चार्जशीट दाखिल होने के बाद भी आरोपी को अग्रिम जमानत मिल सकेगी। कोर्ट के इस आदेश के बाद उत्तराखंड की अदालतों में अब आरोप पत्र दाखिल होने के बाद भी अग्रिम जमानत मिल सकेगी। आदेश से निचली अदालतों अदालतों के न्यायिक अधिकारियों के समक्ष अग्रिम जमानत दिए जाने को लेकर भ्रम की स्थिति भी दूर हो गई है। ज्वालापुर में यह मामला साल 2021 में सामने आया था। पुलिस ने मृतका के पति को उसी दिन गिरफ्तार कर लिया था। जबकि कांग्रेस नेत्री पूनम भगत की गिरफ्तारी की मांग को लेकर लोगों ने शहर में जुलूस निकालकर हंगामा काटा था। 5000 का इनाम घोषित होने के बाद पुलिस ने पूनम भगत को भी गिरफ्तार किया था।
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अग्रिम जमानत के बाद दाखिल हुई थी चार्जशीट
गुरुवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विपिन सांघी, न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी व न्यायमूर्ति रवींद्र मैठाणी की खंडपीठ में हरिद्वार की यशिका भगत की दहेज हत्या मामले में आरोपी देवर अधिवक्ता सौभाग्य भगत की याचिका पर सुनवाई हुई। दरअसल, इस मामले में मई में हाईकोर्ट की एकलपीठ ने सौभाग्य की अग्रिम जमानत मंजूर कर ली थी। बाद में पुलिस की ओर से आरोप पत्र दाखिल कर दिया गया। इसके बाद सौभाग्य की ओर अग्रिम जमानत बढ़ाए जाने की याचिका दाखिल की गई। इस पर एकलपीठ ने आरोप पत्र दाखिल हो जाने के बाद अग्रिम जमानत आगे आगे बढ़ाने से इन्कार कर दिया। इसमें एकलपीठ ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला भी दिया। साथ ही मामले को खंडपीठ को भेज दिया। खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा कि चार्जशीट दाखिल होने के बाद अग्रिम जमानत दी जा सकती है। इसके बाद जब मामला नियत एकलपीठ के पास आया तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देकर अग्रिम जमानत से मना कर दिया गया।
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तीन जजों की संयुक्त पीठ में पहुंचा मामला
पेंच फंसने पर यह मामला तीन न्यायाधीशों की संयुक्त पीठ को भेजा गया। चीफ जस्टिस विपिन सांघी, वरिष्ठ न्यायमूर्ति मनोज तिवारी ने अग्रिम जमानत दिए जाने के पक्ष में जबकि जस्टिस रवींद्र मैठाणी ने विरोध में मत व्यक्त किया।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश बने आधार मामले में जस्टिस रविंद्र मैठाणी की एकलपीठ ने आरोप पत्र दाखिल होने के बाद अग्रिम जमानत से इन्कार करते हुए सुप्रीम कोर्ट के गुरुबख्श सिंह व सुशीला अग्रवाल केस का हवाला दिया। जिसमें कहा गया कि हाईकोर्ट की खंडपीठ ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर व्यापक चर्चा नहीं की। अब एक और सुप्रीम कोर्ट के आदेश तो दूसरी तरह हाईकोर्ट की खंडपीठ का आदेश है। इसलिए उन्होंने मामला बड़ी बेंच को रेफर कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने इन मामलों में कहा था कि अग्रिम जमानत पुलिस के गिरफ्तारी की आशंका पर दी जाती है। आरोप पत्र दाखिल होने के बाद न्यायिक आदेश लागू होते हैं पुलिस के नहीं।
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चार्जशीट के बाद भी गिरफ्तारी की आशंका:हाईकोर्ट
गुरुवार को पारित आदेश में संयुक्त पीठ ने मई में सुप्रीम कोर्ट के मख़दूम बाबा केस का हवाला दिया, जिसमें कहा है कि कोर्ट के समन व वारंट आदेश के बाद भी गिरफ्तारी की आशंका को नकारा नहीं जा सकता है। आरोप पत्र दाखिल होने के बाद गिरफ्तारी की आशंका खत्म नहीं होती तीन जजों की पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के मबदुम बाबा सहित एक दर्जन आदेशों के अध्ययन व चर्चा के बाद आदेश पारित किया कि आरोप पत्र दाखिल होने के बाद भी अग्रिम जमानत दी जा सकती है। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली के अनुसार फिलहाल आरोपित अंतरिम रूप से अग्रिम जमानत पर हैं।