मंगलौर उपचुनाव को लेकर भले ही चुनाव आयोग ने कोई तैयारी ना की हो लेकिन छोटे बड़े सभी राजनैतिक दल इस उपचुनाव का बड़ी शिद्दत के साथ कर रहे इंतजार ,,,
मंगलौर।
अनवर राणा।
मंगलौर उपचुनाव को लेकर भले ही चुनाव आयोग ने कोई तैयारी ना की हो लेकिन छोटे बड़े सभी राजनैतिक दल इस उपचुनाव का बड़ी शिद्दत के साथ इंतजार कर रहे है ।इस सीट पर जहां भाजपा के एक दर्जन से अधिक नेता उपचुनाव लड़ने की इच्छा जता चुके हैं तो वहीं अन्य राजनैतिक दल भी चुनाव लडने का ऐलान कर चुके हैं।हालांकि भाजपा इस सीट पर प्रदेश के विकास और मंगलौर के पिछड़ेपन को उपचुनाव में अहम मुद्दा बना सकती है तो वहीं बसपा के प्रत्याशी भावनात्मक तरीके से चुनाव लडेगी।
इस बार कांग्रेस के पास काज़ी निजामुद्दीन जैसा मजबूत चेहरा है और कांग्रेस इस बार कोर कसर बाकी नहीं छोड़ना चाहेगी लेकिन सवाल यह है कि उनका चुनावी मुद्दा क्या होगा? इसके अलावा आम इंसान विकास पार्टी,राष्ट्रीय लोकदल, आम आदमी पार्टी,समाजवादी पार्टी और कुछ निर्दलीय प्रत्याशी भी इस चुनाव में अपनी उपस्थिति दर्ज कराएंगे।छोटे दलों से बड़े नेताओं का समीकरण डगमगा भी सकता है।भाजपा से अगर पूर्व गन्ना मंत्री स्वामी यतीश्वरा नंद को पार्टी मौका देती है तो वह भाजपा के सबसे प्रबल और मजबूत प्रत्याशी उपचुनाव में साबित हो सकते हैं।
इतना ही नहीं मंगलौर क्षेत्र के कुछ बड़े नेताओं ने उनके लिए भाजपा हाईकमान से प्रत्याशी बनाए जाने की मांग भी कर डाली है। इस बार संभावना जताई जा रही है कि उप चुनाव में सबसे अधिक मुस्लिम प्रत्याशी चुनाव में उतरेंगे। जिसका लाभ भाजपा को मिल सकता है | भाजपा इस चुनाव को लेकर गंभीर नज़र आ रही है | संभावना है कि भाजपा इस चुनाव को जीतने के लिए एडी से चोटी तक के जोर लगा देगी अगर इस उपचुनाव में मुस्लिम वोटों का बिखराव हुआ तो भाजपा को इसका लाभ मिल सकता है।
हालांकि भाजपा आज तक भी इस सीट को जीत नहीं पाई है लेकिन अगर इस बार स्वामी जी को मौका मिला तो समीकरण बदल सकते हैं।स्वामी यतीश्वरानंद मुख्यमंत्री के बेहद नज़दीकी माने जाते हैं |वहीं इस बार कांग्रेस प्रत्याशी और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता काज़ी निजामुद्दीन भी इस बार इस सीट पर कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ेंगे।
काज़ी निजामुद्दीन को उम्मीद है कि भाजपा सरकार से जहां किसान बेहद नाराज हैं वहीं आम आदमी त्रस्त है |ऐसे में किसान संगठनों का समर्थन उन्हें जरूर मिलेगा और उनकी आसानी से जीत हो जायेगी लेकिन काज़ी निजामुद्दीन के साथ समस्या यह है कि आजकल चुनाव में विकास एक अहम मुद्दा है जिससे वह दूर हैं वहीं काज़ी निजामुद्दीन किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं और इस बार वह इस सीट को जीतने के लिए भरपूर कोशिश करेंगे।
हालांकि सभी राजनैतिक दल उपचुनाव लड़ने का ऐलान कर चुके है अब देखना यह है कि उपचुनाव की घोषणा कब तक हो पाएगी और नेताओं का इंतजार कब तक खत्म होगा। गौरतलब है की बसपा विधायक हाजी सरवत करीम अंसारी के निधन के बाद इस सीट पर उपचुनाव होना है और बसपा उनके परिवार से ही किसी को उम्मीदवार बनायेगीमंगलौर उपचुनाव को लेकर भले ही चुनाव आयोग ने कोई तैयारी ना की हो लेकिन छोटे बड़े सभी राजनैतिक दल इस उपचुनाव का बड़ी शिद्दत के साथ इंतजार कर रहे है ।इस सीट पर जहां भाजपा के एक दर्जन से अधिक नेता उपचुनाव लड़ने की इच्छा जता चुके हैं तो वहीं अन्य राजनैतिक दल भी चुनाव लडने का ऐलान कर चुके हैं।हालांकि भाजपा इस सीट पर प्रदेश के विकास और मंगलौर के पिछड़ेपन को उपचुनाव में अहम मुद्दा बना सकती है तो वहीं बसपा के प्रत्याशी भावनात्मक तरीके से चुनाव लडेगी।
इस बार कांग्रेस के पास काज़ी निजामुद्दीन जैसा मजबूत चेहरा है और कांग्रेस इस बार कोर कसर बाकी नहीं छोड़ना चाहेगी लेकिन सवाल यह है कि उनका चुनावी मुद्दा क्या होगा? इसके अलावा आम इंसान विकास पार्टी,राष्ट्रीय लोकदल, आम आदमी पार्टी,समाजवादी पार्टी और कुछ निर्दलीय प्रत्याशी भी इस चुनाव में अपनी उपस्थिति दर्ज कराएंगे।छोटे दलों से बड़े नेताओं का समीकरण डगमगा भी सकता है।भाजपा से अगर पूर्व गन्ना मंत्री स्वामी यतीश्वरा नंद को पार्टी मौका देती है तो वह भाजपा के सबसे प्रबल और मजबूत प्रत्याशी उपचुनाव में साबित हो सकते हैं। इतना ही नहीं मंगलौर क्षेत्र के कुछ बड़े नेताओं ने उनके लिए भाजपा हाईकमान से प्रत्याशी बनाए जाने की मांग भी कर डाली है। इस बार संभावना जताई जा रही है कि उप चुनाव में सबसे अधिक मुस्लिम प्रत्याशी चुनाव में उतरेंगे। जिसका लाभ भाजपा को मिल सकता है | भाजपा इस चुनाव को लेकर गंभीर नज़र आ रही है | संभावना है कि भाजपा इस चुनाव को जीतने के लिए एडी से चोटी तक के जोर लगा देगी अगर इस उपचुनाव में मुस्लिम वोटों का बिखराव हुआ तो भाजपा को इसका लाभ मिल सकता है।हालांकि भाजपा आज तक भी इस सीट को जीत नहीं पाई है लेकिन अगर इस बार स्वामी जी को मौका मिला तो समीकरण बदल सकते हैं।स्वामी यतीश्वरानंद मुख्यमंत्री के बेहद नज़दीकी माने जाते हैं |वहीं इस बार कांग्रेस प्रत्याशी और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता काज़ी निजामुद्दीन भी इस बार इस सीट पर कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ेंगे।काज़ी निजामुद्दीन को उम्मीद है कि भाजपा सरकार से जहां किसान बेहद नाराज हैं वहीं आम आदमी त्रस्त है |ऐसे में किसान संगठनों का समर्थन उन्हें जरूर मिलेगा और उनकी आसानी से जीत हो जायेगी लेकिन काज़ी निजामुद्दीन के साथ समस्या यह है कि आजकल चुनाव में विकास एक अहम मुद्दा है जिससे वह दूर हैं वहीं काज़ी निजामुद्दीन किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं और इस बार वह इस सीट को जीतने के लिए भरपूर कोशिश करेंगे।हालांकि सभी राजनैतिक दल उपचुनाव लड़ने का ऐलान कर चुके है अब देखना यह है कि उपचुनाव की घोषणा कब तक हो पाएगी और नेताओं का इंतजार कब तक खत्म होगा। गौरतलब है की बसपा विधायक हाजी सरवत करीम अंसारी के निधन के बाद इस सीट पर उपचुनाव होना है और बसपा उनके परिवार से ही किसी को उम्मीदवार बनायेगी