हर मामलों में दलालों के टांग फंसाने से परेशान ज्वालापुर रेल चौकी प्रभारी देवेंद्र तोमर को बाकायदा नो एंट्री का बोर्ड तक लगाना पड़ गया। जिसमें पुलिस चौकी के बाहर साफ तौर पर दिया लिख ,,,

हर मामलों में दलालों के टांग फंसाने से परेशान ज्वालापुर रेल चौकी प्रभारी देवेंद्र तोमर को बाकायदा नो एंट्री का बोर्ड तक लगाना पड़ गया। जिसमें पुलिस चौकी के बाहर साफ तौर पर दिया लिख ,,,

हर मामलों में दलालों के टांग फंसाने से परेशान ज्वालापुर रेल चौकी प्रभारी देवेंद्र तोमर को बाकायदा नो एंट्री का बोर्ड तक लगाना पड़ गया। जिसमें पुलिस चौकी के बाहर साफ तौर पर दिया लिख ,,,

हरिद्वार:

जिले में दलालों और फर्जी पत्रकारों की धमा-चौकड़ी मचा कर रख दी है। जिससे पुलिस सहित कई विभागों का सिरदर्द बढ़ा हुआ है। हर मामलों में दलालों के टांग फंसाने से परेशान ज्वालापुर रेल चौकी प्रभारी देवेंद्र तोमर को बाकायदा नो एंट्री का बोर्ड तक लगाना पड़ गया। जिसमें पुलिस चौकी के बाहर साफ तौर पर लिख दिया गया कि दलालों का प्रवेश वर्जित है। महत्वपूर्ण बात यह है कि समस्या अकेले ज्वालापुर की नहीं, बल्कि अधिकांश थाना-कोतवाली व पुलिस चौकी में बनी हुई है। हाल यह है कि कथित मीडियाकर्मियों के झुंड जिले में घूम रहे हैं। जिनका पत्रकारिता से दूर-दूर तक कोई सरोकार नहीं है। उनका एक सूत्रीय कार्यक्रम सुबह से चालू हो जाता है। एक विभाग से दूसरे विभाग, एक चौकी से दूसरे थाने घूमकर शाम तक टारगेट पूरा करना होता है। छोटे से छोटे मामलों में टांग फंसाना और तेल निचोढ़कर खेल करना ही इनका उद्देश्य है। इसलिए पुलिस ही नहीं, कई अन्य सरकारी विभाग, नेता, राशन डीलर, ठेकेदार आदि परेशान हैं। लेकिन पुलिस सहित कोई भी विभाग इन पर अंकुश नहीं लगा पा रहा है। जिससे उत्पीड़न जारी है।

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प्रेस वार्ताओं में बो रहे चरस……

कथित मीडियाकर्मियों की भीड़ से पुलिस की प्रेस वार्ताएं भी अछूती नहीं हैं। सोशल मीडिया पर बनाए गए अजीब गरीब नाम के चैनल की आइडी का पूरा बोरा लेकर साथ चलने वाले झुंड प्रेस वार्ता के दौरान न तो पूरा माजरा समझते और न कुछ जानने का प्रयास करते। तीन दिन पहले कार्यवाहक डीजीपी अभिनव कुमार की प्रेस वार्ता का फलूदा बनाने में ऐसे कथित मीडियाकर्मियों ने कोई कसर नहीं छोड़ी। पुलिस की ज्यादातर प्रेस कान्फ्रेंस में यही हाल है। अधिकारी के बैठने पर मोबाइल से वीडियो बनाना और बात पूरी होते ही बाइट लेने के लिए टूट पड़ना। इसके बाद आईडी ऊपर नीचे, दाएं बाएं करने को लेकर कई बार आपस में ही जूतम पैजार तक होने लगती है। पुलिस की कहानी पर आंख बंद करके वीडियो बनानी और लिखा-लिखाया मैटर चेपकर उसे सोशल मीडिया पर चला देना। कथित मीडियाकर्मियों की ऐसी छिछालेदार करने वाली हरकतों से पत्रकारिता की गरिमा तार-तार हो रही है। सबसे बड़ी हैरत की बात यह है कि रोजाना चीरहरण होते देखने के बावजूद न तो कोई विभाग और न पत्रकार संगठन इस समस्या पर दिलचस्पी लेने को तैयार नही है।

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पुलिस को करना चाहिए सत्यापन……

अपराधिक घटनाओं और कानून व्यवस्था के लिए समय-समय पर पुलिस अभियान चलाकर बाहरी लोगों का सत्यापन करती है, लेकिन कथित मीडियाकर्मियों का कोई सत्यापन न पुलिस और न किसी अन्य विभाग की ओर से किया जा रहा है। जबकि हाल यह है कि दूसरे प्रदेशों और जिलों से आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों ने भी हरिद्वार आकर कथित मीडियाकर्मी का चोला पहना हुआ है। इनकी पूरी दुकान पुलिस के मीडिया सेल के भरोसे चल रही है। वहीं, पुलिस कप्तान प्रमेंद्र डोबाल का कहना है कि ऐसे तत्वों का जल्द ही सत्यापन कराया जाएगा। मीडिया की आड़ में कहीं कोई गलत करता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।हरिद्वार: जिले में दलालों और फर्जी पत्रकारों की धमा-चौकड़ी मचा कर रख दी है। जिससे पुलिस सहित कई विभागों का सिरदर्द बढ़ा हुआ है। हर मामलों में दलालों के टांग फंसाने से परेशान ज्वालापुर रेल चौकी प्रभारी देवेंद्र तोमर को बाकायदा नो एंट्री का बोर्ड तक लगाना पड़ गया। जिसमें पुलिस चौकी के बाहर साफ तौर पर लिख दिया गया कि दलालों का प्रवेश वर्जित है। महत्वपूर्ण बात यह है कि समस्या अकेले ज्वालापुर की नहीं, बल्कि अधिकांश थाना-कोतवाली व पुलिस चौकी में बनी हुई है। हाल यह है कि कथित मीडियाकर्मियों के झुंड जिले में घूम रहे हैं। जिनका पत्रकारिता से दूर-दूर तक कोई सरोकार नहीं है। उनका एक सूत्रीय कार्यक्रम सुबह से चालू हो जाता है। एक विभाग से दूसरे विभाग, एक चौकी से दूसरे थाने घूमकर शाम तक टारगेट पूरा करना होता है। छोटे से छोटे मामलों में टांग फंसाना और तेल निचोढ़कर खेल करना ही इनका उद्देश्य है। इसलिए पुलिस ही नहीं, कई अन्य सरकारी विभाग, नेता, राशन डीलर, ठेकेदार आदि परेशान हैं। लेकिन पुलिस सहित कोई भी विभाग इन पर अंकुश नहीं लगा पा रहा है। जिससे उत्पीड़न जारी है।
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प्रेस वार्ताओं में बो रहे चरस……
कथित मीडियाकर्मियों की भीड़ से पुलिस की प्रेस वार्ताएं भी अछूती नहीं हैं। सोशल मीडिया पर बनाए गए अजीब गरीब नाम के चैनल की आइडी का पूरा बोरा लेकर साथ चलने वाले झुंड प्रेस वार्ता के दौरान न तो पूरा माजरा समझते और न कुछ जानने का प्रयास करते। तीन दिन पहले कार्यवाहक डीजीपी अभिनव कुमार की प्रेस वार्ता का फलूदा बनाने में ऐसे कथित मीडियाकर्मियों ने कोई कसर नहीं छोड़ी। पुलिस की ज्यादातर प्रेस कान्फ्रेंस में यही हाल है। अधिकारी के बैठने पर मोबाइल से वीडियो बनाना और बात पूरी होते ही बाइट लेने के लिए टूट पड़ना। इसके बाद आईडी ऊपर नीचे, दाएं बाएं करने को लेकर कई बार आपस में ही जूतम पैजार तक होने लगती है। पुलिस की कहानी पर आंख बंद करके वीडियो बनानी और लिखा-लिखाया मैटर चेपकर उसे सोशल मीडिया पर चला देना। कथित मीडियाकर्मियों की ऐसी छिछालेदार करने वाली हरकतों से पत्रकारिता की गरिमा तार-तार हो रही है। सबसे बड़ी हैरत की बात यह है कि रोजाना चीरहरण होते देखने के बावजूद न तो कोई विभाग और न पत्रकार संगठन इस समस्या पर दिलचस्पी लेने को तैयार नही है।
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पुलिस को करना चाहिए सत्यापन……
अपराधिक घटनाओं और कानून व्यवस्था के लिए समय-समय पर पुलिस अभियान चलाकर बाहरी लोगों का सत्यापन करती है, लेकिन कथित मीडियाकर्मियों का कोई सत्यापन न पुलिस और न किसी अन्य विभाग की ओर से किया जा रहा है। जबकि हाल यह है कि दूसरे प्रदेशों और जिलों से आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों ने भी हरिद्वार आकर कथित मीडियाकर्मी का चोला पहना हुआ है। इनकी पूरी दुकान पुलिस के मीडिया सेल के भरोसे चल रही है। वहीं, पुलिस कप्तान प्रमेंद्र डोबाल का कहना है कि ऐसे तत्वों का जल्द ही सत्यापन कराया जाएगा। मीडिया की आड़ में कहीं कोई गलत करता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

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