विरोधियों की घेराबंदी घेरा बन्दी समीना पत्नी सलीम प्रधान का बिगाड़ न दे खेल,,,

विरोधियों की घेराबंदी घेरा बन्दी समीना पत्नी सलीम प्रधान का बिगाड़ न दे खेल,,,

नगमा परवीन पत्नी नाजिम त्यागी, शबनम अंजुम पत्नी अकरम साबरी, और फरजाना पत्नी राशिद कुरैशी ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में ताल ठोक बसपा प्रतियाशी समीना पत्नी सलीम प्रधान की राह कर सकता है मुश्किल,,,

विरोधियों की घेराबंदी घेरा बन्दी समीना पत्नी सलीम प्रधान का बिगाड़ न दे खेल,वोट बैंक बचाने की है बड़ी चुनोती,,,
कलियर:
अनवर राणा।
नगरपंचायत चुनाव की सुगबुगाहट अब जोर पकड़ चुकी है। गली-मोहल्लों से लेकर चौपालों तक चुनावी चर्चाएं गर्म हैं। हर नुक्कड़ पर रणनीतियों की बिसात बिछी हुई है और हर उम्मीदवार अपने पक्ष में समर्थन जुटाने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रहा है। परंतु जहां समर्थन जुटाने की होड़ है, वहीं दूसरों के वोट बैंक में सेंधमारी का खेल भी बड़े पैमाने पर शुरू हो चुका है।
कलियर नगरपंचायत सीट पर इस बार बसपा से समीना पत्नी सलीम प्रधान चुनावी मैदान में हैं। पिछली बार सलीम प्रधान दूसरे स्थान पर रहे थे, लेकिन इस बार चुनावी समीकरण उनके पक्ष में नहीं दिख रहे हैं। वजहें कई हैं, और ये वजहें उनकी चुनावी जमीन को खिसकाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहीं।
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कांग्रेस का सिंबल और सलीम प्रधान की नई चुनौती….
पिछले चुनाव में कांग्रेस के कई समर्थित उम्मीदवार मैदान में थे, जिससे कांग्रेस के वोट बंट गए थे। इस बार कांग्रेस ने सिंबल पर अपना उम्मीदवार उतारा है, जिससे उसका पूरा वोट बैंक एकजुट नजर आ रहा है। यह परिवर्तन सलीम प्रधान के लिए गहरी चुनौती बन सकता है, क्योंकि अब उन्हें संगठित कांग्रेस के मुकाबले अपनी ताकत साबित करनी होगी। हालांकि कांग्रेस प्रत्याशी के लिए भी कांग्रेस का वोट बैंक संभाले रखना बड़ी चुनौती है।
इस चुनाव में सबसे दिलचस्प मोड़ निर्दलीय प्रत्याशियों के कारण आया है। नगमा परवीन पत्नी नाजिम त्यागी, शबनम अंजुम पत्नी अकरम साबरी, और फरजाना पत्नी राशिद कुरैशी ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में ताल ठोकी है। इनका अपना-अपना प्रभावशाली वोट बैंक है, जो सीधे-सीधे बसपा उम्मीदवार समीना के वोट बैंक में सेंध लगा रहा है। जिससे सलीम प्रधान की रणनीति लड़खड़ाती नजर आ रही है। इन निर्दलीय उम्मीदवारों के बीच सलीम प्रधान घिरे नजर आ रहे है। समीकरण ऐसे बन रहे है कि सलीम प्रधान को अपने ही वोट बैंक संभालना सबसे बड़ी चुनौती बन गई है।
विरोधियों की घेराबंदी और वोट बैंक की चिंता:-
सलीम प्रधान के विरोधियों ने वोटरों को अपने पक्ष में करने के लिए हर संभव कोशिशें शुरू कर दी हैं। घरेलू समीकरणों, जातिगत समीकरणों और व्यक्तिगत संपर्कों का ऐसा खेल चल रहा है कि सलीम प्रधान पिछड़ते दिखाई दे रहे हैं। अगर यह कहा जाए कि यह चुनाव उनके लिए अस्तित्व की लड़ाई है, तो गलत नहीं होगा। हर दिन का बदलता समीकरण उनकी नींद उड़ाए हुए है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अगर हालात ऐसे ही रहे, तो सलीम प्रधान को पिछले चुनाव का इतिहास भी दोहराना मुश्किल होगा। अब देखना यह है कि सलीम प्रधान किस चाल से खुद को इस घेरे से बाहर निकालते हैं, या फिर शह-मात की बाजी में उलझे रहते है। बहरहाल वक्त ही बताएगा कि कलियर की राजनीति में कौन सी चाल चुनावी जीत का ताज पहनाएगी और किसके सपने टूटेंगे। फिलहाल तो सलीम प्रधान के लिए ‘डैमेज कंट्रोल’ ही जीत की कुंजी बनता दिख रहा है।

उत्तराखंड