दरगाह की आय को लूटने के लिये फैलाया जा रहा जनता में भरम।

दरगाह की आय को लूटने के लिये फैलाया जा रहा जनता में भरम।

*दरगाह की आय पर गिद्ध दृष्टि*
*लोगों मे फैलाया जा रहा भ्रम*

*पिरान कलियर*
*विश्व प्रसिद्ध दरगाह साबिर पाक के वार्षिक ठेके चार माह बाद भी नही छोडे जा सके है। इन ठेको से प्राप्त होने वाली करोड़ों रुपये की आय पर कुछ लोगो ने गिद्ध दृष्टि जमा ली है। इन लोगो ने अपने षड्यंत्र मे सफलता प्राप्त करने के लिए सभी नीति अपनाई हुई है। इसके लिए तरह-तरह की अफवाहे भी फैलाई जा रही है। दरगाह क्षेत्र मे व्याप्त एक खास चर्चा के अनुसार नगर पंचायत दरगाह पर चढने वाले प्रसाद चादर, ईलायची दाना, ईतर, अगरबत्ती, तेल आदि व सोहन हलवा -हलवा पराठा आदि दरगाह के निकट वर्ती क्षेत्र मे तहबाजारी के अन्तर्गत विक्रय करने देगी। यदि ऐसा होता है तो कोई व्यक्ति लाखों – करोड़ों रुपये की बोली लगा कर प्रसाद आदि का ठेका दरगाह से क्यों लेगा। बेईमान ठेकेदार पहले ही दरगाह के करोड़ों रुपये डकारें हुए बैठे है। अब इस अफवाह को तेजी से हवा दी जा रही है। तीसरी बार भी ठेकेदारो द्वारा ठेको मे भाग न लेना इसी मुहिम का हिस्सा है। प्रसाद के अलावा महत्वपूर्ण दो ठेके टूव्हीलर व फोरव्हीलर पार्किग भी रोक दिये गये है। केवल शोचालय व जूते रखाई के ठेके बचते है। दरगाह की आय हडपने का सिलसिला तहबाजारी का विवाद उत्पन्न कर शुरू किया गया था। जो दरगाह प्रबंधन की भ्रष्ट एवं गैर जिम्मेदाराना नीति के चलते आज – कल फलफूल रहा है। नगर पंचायत द्वारा तहबाजारी की रसीदें काटी जा रही है। जिस पर व्यक्ति का नाम , पैसा व तहबाजारी के अलावा कुछ नही लिखा जा रहा है कि पैसा किस प्रकार के काम करने वाले से और किस बाजार अथवा किस स्थान का लिया जा रहा है। जिसे उचित नही कहा जा सकता। इस प्रकार की तहबाजारी वसुली ने ही उन लोगों को भ्रम की स्थिति मे डाल दिया है जो वास्तव मे दरगाह से ठेके लेकर कारोबार करना चहाते है। लेकिन दरगाह प्रबंधन की और से ऐसा कोई सार्थक कदम उठाया गया नही दिखाई दे रहा है जिससे ठेके लेने के इच्छुक लोगों को सही स्थिति की जानकारी मिल सके की भविष्य मे क्या व्यवस्था रहेगी? चूंकि दरगाह प्रबंधन द्वारा कैई माह पूर्व दरगाह क्षेत्र मे कुछ अस्थाई दूकानों की भूमि 11माह के लिए नीलामी पद्धति से आवंटित की थी और रुपये भी जमा करा लिये गये थे लेकिन उन्हें कब्जा आज तक नही मिल पाया है। यानि दरगाह प्रबंधन की कार्यशैली पर भी विश्वास करना आसान काम नही है।*

उत्तराखंड