मुस्लिम समाज नेताओ के वोट बैंक व नेताओ की दुकानदारी चलाने तक सीमित ,,,,,।
मुस्लिम नेताओं की अनदेखी और बेरुखी से मुस्लिम समाज बेइंतहा दुखी,,,,।
रुड़की/कलियर
*अनवर राणा*
जनपद हरिद्वार मे 2009 के के बाद से मुस्लिम लीडरशिप पूरी तरह हासये पर खिसकी हुई नजर आ रही है । आज तक भी यह लीडरशिप पूरी तरह गायब है ।वर्ष 2009 तक उत्तराखण्ड प्रदेश में विधान सभा का लगातार दो बार प्रतिनिधित्त्व करने वाले विधायक हाजी सहजाद ने मुस्लिमो,दलितों,किसानों व नोजवानो की जो आवाज बुलंद कर राजनीति में एक मुस्लिम कद्दावर नेता की छवि बनाई थी वो छवि भी अब किसी नेता में दिखाई नही दे रही है ओर मुस्लिम समाज अब बिल्कुल ही नेतृत्व विहीन महसूस कर रहा है ।जबकि प्रदेश की पूर्व कोंग्रेस सरकार में सत्ता का सुख भोग चुके व दोबारा कोंग्रेस के टिकट पर विधायक बने हाजी फुरकान अभी तक अपनी विधान सभा के बाहर कोई रुतबा नही दिखा पाये ओर उनकी छवि भी किसी कद्दावर नेता की नही बनी बस छवि बनी तो सिर्फ जमीनों की खरीद फरोख्त कर अपने लोगो व अपने आप को मजबूत करने भर ही उपलब्धियों में रही ।जिस कारण प्रदेश का मुस्लिम तबका अपने आपको नेतृत्व विहीन हो गया है।अब कोई मुस्लिमो व मुस्लिम तीर्थ स्थलों पर हो रही चल अचल सम्पत्तियों की लूटपाट के बारे में भी आवाज उठाने वाला नही है।हालांकि कलियर विधायक हाजी फुरकान अहमद ने तीन साल का वक्त गुजर ने के बाद एन आर सी संशोधन बिल देश मे लागू होने के बाद कलियर में एक प्रोग्राम कर यहां की जनता को चेहरा दिखाने का काम किया।जब कि कलियर स्थित गंगनहर का पुल चार साल से क्षति ग्रस्त व कलियर स्थित हिन्दू मुस्लिम आस्था की प्रतीक दरगाह कार्यालय स्टाफ के भ्र्ष्टाचार व साबिर पाक की उर्स वाली जमीनों के खिलाफ कोई आवाज नही बुलन्द करने से मुस्लिमो को निराश ही किया है।दोबारा विधायक रहे कद्दावर नेता की छवि बनाने वाले हाजी सहजाद भी चुप्पी साद कर जनता का तमाशा देख रहे है ओर विधायक फुरकान से नाराज कुछ स्थानीय लोगो को अपनी ओर आकर्षित करने भर से 2022 के विधान सभा चुनाव को जीतने के मंसूबे पर ही चल रहे हैं ओर फुरकान समर्थक रहे कुछ चर्चित जनताविहीन पूर्व प्रधानों को अपने पाले में कर आगामी 2022 का चुनाव जीतने का सपना संजोए हैं।जबकि जनता इन दोनों नेताओं की बेरुखी ओर अनदेखी से परेशान हो रही है। जिसका परिणाम यह रहा कि जनता के हित की वह अपने समाज की लड़ाई लड़ने वाले रहनुमा व नेताओ को जनता द्वारा जीता दिए गए । लेकिन लाख टके का सवाल यह है कि मुस्लिम समाज के वोट हथियाने के लिए उनके दम पर अपना डंका बजाने के लिए तो नेता अग्रणीय रहते हैं जबकि दुख और परेशानी में जनता को भी नेताओं से बहुत आस होती है । आखिर सवाल यह पैदा होता है कि क्या मुसलमान इनके वोट बैंक तक सीमित है इनकी दुकानदारी चलाने के लिए सीमित होकर रह गया है? बहुत से सवाल है जो मुस्लिम समाज के जेहन में उठ रहे हैं तथा बार-बार जवाब भी ढूंढ रहे हैं लेकिन अभी तक कोई उत्तर मिलता हुआ नजर नहीं आ रहा है मुस्लिम नेताओं की यह बेरुखी आने वाले समय में यकीनन बड़ा गुल खिलाएगी और खिलाना भी चाहिए जो मुस्लिम नेता वोट पाकर बड़े-बड़े पदों पर आसीन हुए व आज अपनी जिम्मेदारी से बच रहे हैं।