जिस नगरी की पहचान विदेशों में भी हो उसी नगरी में बस अड्डे तक की नही व्यवस्था,,,,
पर्यटन स्थल पर अगर सुविधाओं की बात करे तो दिखाई पड़ती है लचर व्यवस्था ,,,
रुड़की
अनवर राणा
पिरान कलियर: आपको यह जानकर बेहद आश्चर्य होगा कि जिस जगह भारत की पहली रेलगाड़ी चलाई गई थी आज उसी स्थान पर बस सुविधा तक नही है। आज भी वहां के लोग डग्गामार वाहनों, ऑटो या घोड़ा बुग्गियो से सफर तय करते है, डिजिटल इंडिया की ये तस्वीर सरकारी मशीनरी के दावे की हकीकत बयां करती है। उत्तराखंड पर्यटन का केंद्र माना जाता है, यहाँ अनेकों तीर्थ स्थलों के साथ साथ पर्यटन के विभिन्न साधन मौजूद है। उत्तराखंड में पर्यटन को सरकार की खासी आमदनी भी है। उत्तराखंड सरकार पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए लाखो करोड़ो रुपये प्रचार प्रसार पर खर्च करती है। वही पर्यटन स्थल की सुविधाओं की अगर बात करे तो व्यवस्था लचर दिखाई पड़ती है।
रुड़की से लगभग 8 किलो मीटर की दूरी पर बसा विश्व प्रसिद्ध तीर्थ स्थल पिरान कलियर आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित नजर आता है, जानकर बताते है कि भारत में प्रथम बार रेलगाड़ी कलियर और रुड़की के बीच चलाई गयी थी, लेकिन आज उसी कलियर में बस अड्डे तक की सुविधा नही है। जबकि पिरान कलियर में देश-विदेश से जायरीन आते है जो रुड़की से घोड़ा बुग्गी या डग्गामार वाहनों या फिर ऑटो सवारियों से पिरान कलियर पहुँचते है। इससे बड़ी बिडम्बना क्या होगी, कि जिस नगरी की पहचान विदेशों में भी हो उसी नगरी में बस अड्डे तक की व्यवस्था नही है।
यू तो पिरान कलियर को पांचवा धाम, विश्व प्रसिद्ध तीर्थ स्थल, धर्मनगरी जैसे अनेकों नाम से जाना जाता है, लेकिन अगर यहां सुविधाओ की बात करे तो सुविधाओं के नाम पर ऊंठ के मुँह में जीरा नजर आता है। आपको बता दे नैशनल हाइवे निर्माण से पहले कलियर मार्ग ही हाइवे कहलाता था, इसी मार्ग से तमाम बसे हरिद्वार और दिल्ली के लिए होकर गुजरती थी, लेकिन समय के साथ नैशनल हाइवे डवलप हुआ और ये हाइवे तमाम रोडवेज की सुविधाओं से वंचित हो गया, हाल ही में कलियर में कोई रोड़वेज सुविधा नही है, जबकि पिरान कलियर में हिंदुस्तान के कोने कोने और विदेशों से अकीदतमंद लोग आते है, लेकिन सुविधाए ना होने के कारण बड़ी दिक़्क़तों का सामना करने को मजबूर होते है।
शाम ढलते ही सवारियों को वाहन उपलब्ध नही होते है। दिनभर डग्गामार वाहन या घोड़ा बुग्गी से यात्री सफर करते है लेकिन जैसे ही शाम ढलती है, तो यात्रियों के लिए मुसीबत खड़ी हो जाती है, ऑटो चालक जायरीनो से मनमुताबिक किराया वसूलते है, विकल्प ना होने के कारण जायरीन अपने जेबें ढीली करने पर मजबूर हो जाते है। जबकि पिरान कलियर उत्तराखंड का एक बड़ा धार्मिक स्थल है जहां दूर दराज से आने वाले जायरीनो की सुख सुविधा के लाख दावे होते है, लेकिन रोडवेज सुविधा से वंचित ये धर्मनगरी तमाम दावों को चिड़ाती नजर आती है।
सूफी सन्तो की नगरी पिरान कलियर में विश्व प्रसिद्ध दरगाह हजरत अलाउद्दीन अली अहमद साबिर पाक के साथ साथ अनेकों मज़ारात है जहाँ देश विदेशों से लोग हाजरी लगाने आते है। दरबार-ए-साबरी में बड़े-बड़े रसूखदार नेता और बड़े बड़े अधिकारी हाजरी लगाने आते है और पिरान कलियर की तस्वीर बलने की हवाई बाते करते है लेकिन तमाम वादे और दावे हवा हवाई साबित होते है। मुख्यमंत्रीयो से लेकर राज्यपाल तक इस दरबार में हाजरी लगाने आते है लेकिन कलियर की बदहाली शायद उन्हें भी नजर नही आती, स्थानीय लोगो ने कई बार सम्बन्धीत अधिकारियों को रोडवेज की समस्या से अवगत भी कराया लेकिन आजतक कोई समाधान नही निकल पाया, जिसके चलते आज भी लोग डग्गामार वाहनों और घोड़ा बुग्गियो से ही सफर तय करने पर मजबूर है।
वही स्थानीय लोगो की माने तो रोडवेज सुविधा के लिए शासन स्तर तक उन्होंने शिकायत की है लेकिन कोई सुनवाई नही हुई। लोगो ने बताया रोडवेज सुविधा ना होने से रोज़मर्रा के कार्यो में काफी दिक्कतें आती है, इसके साथ ही देर रात को वाहनों की सुविधा ना होना बड़ी दिक्कतें खड़ी करता है। स्थानीय लोगो की माने तो इस धर्मनगरी से भेदभाव हुआ है, जबकि कलियर और रुड़की के बीच भारत की पहली रेलगाड़ी चली थी, आज रेल की पटरियों की निशान भी मौजूद नही है। और ना ही कोई रोडवेज सुविधा।
सुविधाओ से वंचित धर्मनगरी पिरान कलियर की सूरत कैसे और कब बदलेगी ये तो आने वाला वक्त ही बताएगी, बरहाल ये जरूर कहा जा सकता है की सिस्टम की लापरवाही का खामियाजा ये धर्मनगरी भुगत रही है।