सबकुछ जानते हुए भी क्यों बेखबर बने बैठे है सम्बंधित सधिकारी….
चो0 अनवर राणा
पिरान कलियर: जायरिनों की सुख सहूलियत और दरगाह की आय के मद्देनजर दरगाह क्षेत्र में विभिन्न ठेकों को छोड़ा जाता है जिससे जायरिनों को असुविधा का सामना ना करना पड़े, और दरगाह की व्यवस्था की चाकचौबंद रहे, लेकिन पिछले कुछ सालों से इस व्यवस्था का स्वरूप बदल चुका है, ठेका प्रथा ने जायरिनों को सहूलियत देने की बजाय उनका शोषण करना शुरू कर दिया, इसपर अधिकारियों की चुप्पी ने और मुश्किलें पैदा की, आलम के है कि ठेकेदार मनमर्ज़ी जायरिनों से उगाई करता है और कुछ स्वार्थित अधिकारी उन्हें बल देते है, यही वजह है कि जायरिनों के शोषण का मामला लगातार बढ़ता जा रहा है।
बात अगर फोर व्हीलर पार्किंग की करें तो सबसे पहले कलियर दाखिल होने पर यही शोषण शुरू हो जाता है। सूत्र बताते है कि दरगाह अधिकारियों ने छोटे वाहन 30 रुपये और बड़े वाहनों का शुल्क 50 रुपये तय कर ठेका दिया है, लेकिन ठेकेदार इस राशि से अधिक जायरिनों से वसूल रहा है। बाहरी जायरिनों को शुल्क की जानकारी ना होने का फायदा ठेकेदार खूब धड़ल्ले से उठाता है, यदि पार्किंग स्थल पर रेट लिस्ट लगी हो तो अधिक वसूली नही हो पाएगी, जबकि ठेका देते समय 20 शर्तो वाले पत्र में एक नियम ये भी साफ-साफ लिखा है कि ठेकेदार को रेट लिस्ट लगाना अनिवार्य है। लेकिन बावजूद इसके करीब दो माह हो गए ठेका चलते हुए अभी तक रेट लिस्ट का कोई अता पता नही है, ऐसा नही है कि ये जानकारी दफ्तर अधिकारियों को इस हो, उन्हें भी रेट लिस्ट ना लगने की पूरी-पूरी जानकारी मुहैया है लेकिन उसके बाद भी वह रेट लिस्ट लगवाने में कोई दिलचस्पी नही दिखा रहे। गौर करने वाली बात ये है कि रेट लिस्ट ना लगाने से ठेकेदार का तो फायदा साफ दिखाई पड़ता है लेकिन दरगाह दफ्तर अधिकारियों का क्या फायदा है ये समझ से परे है।