दरगाहों पर कुकुरमुत्तों की तरह उग रहे व्यापारिक सूफ़ी…..

दरगाहों पर कुकुरमुत्तों की तरह उग रहे व्यापारिक सूफ़ी…..

दरगाहों पर कुकुरमुत्तों की तरह उग रहे व्यापारिक सूफ़ी…..

वक्फ बोर्ड में दर्ज दरगाह बाबा जलानी की लाखों की वार्षिक आय व सम्पत्ति को कथित सूफी कर रहे खुर्दबुर्द,,,चर्चाएं व्याप्त,,

रुड़की/कलियर
अनवर राणा।
सूफीईज्म में ख़िलाफ़त एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, ये सिलसिले को सुचारु रखने और सूफीईज्म के प्रचार-प्रसार में अहम भूमिका निभाता है। ख़िलाफ़त (पॉवर ऑफ अटर्नी) ऐसे शख़्स को सौंपी जाती है जो शरीयत, तरीकत, मार्फ़त, तक़वा, परहेजगारी के इम्तिहान को पास कर लेता है। एक कढ़ाह हुआ इंसान जो दुनियावी मोह को त्याग कर ईश्वर अल्लाह की याद में लीन हो जाता है तब जाकर उसे लक़ब मिलता है *”सूफ़ी”* लेकिन अफ़सोस बदले दौर में ये रीत भी बदलाव की भेंट चढ़ती दिखाई देने लगी। कुछ कथित व्यापारिक सूफ़ियों ने ख़िलाफ़त की परिभाषा ही बदल-कर रख दी। ऐसे लोगों को ख़िलाफ़त दी जाने लगी जो सिलसिले की जानकारी तक नही रखते, जिनको सूफीईज्म के *سے* का मतलब भी नही मजलूम, जो सिर्फ पैसे को ही सबकुछ मानते हैं ऐसे लोग सूफ़ियों के भेष में लोगों को गुमराह करने और अपनी तिजोरियां भरने का काम कर रहे है। कुछ दिन पूर्व कथित सूफी महाराज जिसने बाबा जलानी की मृत्यु के बाद से उनकी खानकाह व मजार पर कब्जा जमाया होने की चर्चा तो है ही वहीं कथित सूफी महाराज व उसके गुर्गे मिलकर बाबा जलानी की खानकाह के पास बाबा जलानी के द्वारा खरीदे गये एक जमीन के दुकड़े को बेचकर तो अपनी जेब भर ले गये बल्कि बाबा जलानी की मजार पर रखे दानपत्रों से लाखों की रकम भी निकालकर अपने घर परिवार की मौज मस्ती में उड़ाने की चर्चा यहां क्षेत्र में आग की तरह फैल रही है। जानकार बताते है कि कथित सूफी महाराज अपने आपको बाबा जिलानी का ख़लीफ़ा बताते है, जबकि बाबा जिलानी के अन्य ख़लीफ़ा कथित सूफी की इस बात की ताक़ीद नही करते। बहरहाल रेवड़ियों की तरह सूफी महाराज के द्वारा बांटी जा रही ख़िलाफ़त और नाक़ाबिल लोगो को दी गई जिम्मेदारी का ही ये प्रमाण है कि यहां आज कुकुरमुत्तों की तरह फर्जी सूफ़ियों का जमावड़ा नज़र आता है।

उत्तराखंड