मामला इमाम साहब उर्स में चढ़े हुवे प्रशाद व चादरों के इस्तेमाल का,,,

मामला इमाम साहब उर्स में चढ़े हुवे प्रशाद व चादरों के इस्तेमाल का,,,

*मामला इमाम साहब उर्स में चढ़ने वाली चादर व प्रशाद का ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,*
*::बात कितनी बिगड़ जाती है अपने आप को बनाने के लिये!,,,,,,कितना गिर जाता है इंसान खुद को उठाने के लिये!!::*

पिरान कलियर।
(अनवर राणा)

*जी हां यह मामला आजकल कलियर में मोहर्रम माह की चाँद दिखने पर इमाम साहब दरगाह के उर्स शुरू होने से लेकर समापन चाँद की छह तारिक को ग़ुस्ल शरीफ की रस्म पूरा होने को लेकर चाँद की पहली तारीख को मेहदी डोरी व फातिया के प्रशाद व चादर को लेकर चर्चा का विषय इसलिये बना हुआ है कि दरगाह साबिर पाक पर चढ़े प्रशाद व चादर को ही इस्तेमाल कर वहां पर जिम्मेदारों द्वारा रस्म पूरी की गई ओर हमेशा की जाती रही है जिसको लेकर धार्मिक नगरी में अनेक चर्चाओं का बाजार गर्म है।*
धर्म नगरी कलियर शरीफ में जहां विश्व प्रशिद्ध दरगाह साबिर पाक के उर्स में देश विदेश से जायरीन भाग लेते है ऐसे ही कलियर में साबिर पाक से सेकड़ो वर्ष पूर्व बड़ी दरगाह के नाम से मशहूर इमाम साहब तशरीफ़ अपने साथ 72 लोगो के काफिले के साथ आये बताए जाते हैं।ओर रिश्ते व उम्र में भी हजरत अलाउद्दीन अली अहमद साबरी से बड़े बताए गए हैं।कुछ लोग तो इमाम साहब को साबिर पाक के दादा पीर बताते है।लेकिन वक्फ बोर्ड के अधीन व जिला प्रशासन के अधीन चल रहे दरगाह दफ्तर के करिन्दों ओर रसुमात को पूरा करने वाले लोग आस्थाओं से खिलवाड़ कर दरगाह साबिर पाक में जायरीनों के द्वारा चढाये गए गिलाफ व चादरों को उतार कर उम्र व सिलसिले में दादा पीर इमाम साहब पर मोहर्रम माह का चांद दिखने वाली रात को कुछ इलेचिदाना व चादर कि पटोकली बांध कर फातिया के लिये ले जाया गया जो बिल्कुल भी जायज नही बताया जा रहा है।जब जिम्मेदार लोगों से इस बारे में इस पत्रकार द्वारा पूछा गया तो कुछ ने तो कुछ भी कहने से इंकार कर दिया ओर कुछ ने इसको आस्था के साथ खिलवाड़ बताया तो कुछ लोगो व अक़ीददत मन्द लोगो ने दरगाह दफ्तर व रसुमात को पूरा करने वाले जिम्मेदारों पर ही सवाल खड़ा कर कहा कि जो लोग जायरीनों से नजर नियाज के नाम पर लाखों रुपये सालाना कमाई कर रहे है वो 5 किलो सूजी का हलवा इमाम साहब के उर्स के नाम पर भी अपनी जेब से नही बनवा सकते ओर दूसरे मजार पर चढ़े हुवे प्रशाद व चादर से रसुमात पूरी करते है इससे बड़ी ओर कोई विडम्बना व आस्था से खिलवाड़ नही हो सकती।जिसको लेकर अक़ीददत मन्द लोगो मे चर्चा व्याप्त हो रही है।
*अक़ीददत मन्द लोगो ने बताया कि हजरत गोस पाक के बड़े बेटे के लड़के हुवे इमाम अबू सुहाले यानी इमाम साहब ओर हजरत गोस पाक के ही दूसरे बेटे के पड़पोते हुवे अजरत अलाउद्दीन अली अहमद साबिर पाक इसलिये अदब व आस्था के लिहाज से हजरत इमाम साहब साबिर पाक के परदादा हुवे है लेकिन रुतबे में बड़े साबिर पाक है फिर भी कोई भी बेटा नही चाहेगा कि खुशी के दिन मेरी उतरी हुई कतरन व कपड़े मेरा बाप या दादा पहने यह एक बड़ा मामला चर्चा का विषय बना हुआ है।हाँ यह तो कुछ अक़ीददत मन्द मानते है कि उर्स के शुरू होने पर चढ़े हुवे प्रशाद व चादर को तबरूक के तौर पर तो तकसीम किया जा सकता है लेकिन चढ़े हुवे फूल ओर प्रशाद व चादर को दूसरे मजार पर चढ़ाया नही जा सकता जो हजरत इमाम साहब के उर्स में आज तक जिम्मेदार लोग दो चादर नई नही बना सकते ओर 5 किलो सूजी का हलवा अपने अस्त्र से नही करवा सकते ऐसे लोग आस्थाओं से खिलवाड़ कर रसुमात के नाम पर भी बड़ा खेल खेलते नजर आ रहे है।जिसको लेकर दरगाह अक़ीददत मन्द लोगो मे एक बड़ा सवाल चर्चा का विषय बना हुआ है।

उत्तराखंड