बदलते दौर में खिदमत बनी सज्जादगी,,,

बदलते दौर में खिदमत बनी सज्जादगी,,,

बदलते दौर में खिदमत बनी सज्जादगी,,,

बिर्टिश हुकूमत में मुजावर देते थे दरगाह की खिदमत को अंजाम,,,,।
रुड़की
अनवर राणा
हाईटेक युग मे जैसे जैसे दुनिया का निजाम बदलता जा रहा है,वैसे वैसे ही लोगो की आस्था,अक़ीददत,खिदमत, मान्यताओं का ढंग भी बदलता जा रहा है।बात की जाये अगर पिरान कलियर दरगाह साबिर पाक की तो यहां तो खिदमत के नाम पर लोगो ने खिलवाड़ जोरशोर से शुरू की हुई है,कोई गलत परम्पराओ को रोक टोकने वाला भी नही है।क्योंकि साबिर पाक की दरगाह की देखरेख के लिये सेकड़ो कर्मियों का अमला भी खिदमत के नाम पर सज्जादगी की रस्मो को ही निभाना चाहते है,जिससे यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं का शोषण व उत्पीड़न के सिवाय ये लोग कुछ भी सुविधा उनके रहने खने की निहि कर पाते।बिर्टिश शासन काल मे यहां की देखरेख मुजावरो के हाथों में थी ओर यहां पर खास आर्थिक मदद भी नही थी ओर आने वाले श्रद्धालुओं की आमद भी बहुत कम थी।लेकिन यहां की चल अचल संपत्ति पर ज्वालापुर निवासी एक साधारण परिवार की नजर लगी हुई थी।उसी समय इस परिवार ने मुजावरो द्वारा की जा रही दरगाह की देखरेख पर आक्रमण कर दिया गया।जिसका मुकद्दमा भी बिर्टिश शासन काल मे अदालत तक जा पहुंचा ।अदालत ने दोनों तरफ से सुनवाई की तो असली हक वाले मुजावर बस अनपढ़ होने के कारण अदालत में यह कहकर केश हार गये की दरगाह हमारी है,जिसके जवाब में इस पर कब्जा करने वाले ज्वालापुर निवासियों ने अदालत में सरेआम कहा कि हमारे तन पर कपड़े भी दरगाह सबीरे पाक के हैं।बस अदालत ने इतना सुनकर फैसला भी उस परिवार के हक में कर दिया जिसकी चर्चा आज तक सुनी जा सकती है, ओर मुजावरो को खिदमत से बेदखल कर कलियर से बाहर सजा के तौर पर घने जंगल मे रहने को मजबूर कर दिया।अब वही देखरेख बदलते दौर में खिदमत सज्जादगी का रूप लेकर दरगाह की संपत्तियों पर काबिज हो चुकी है।यहां अब अपना पलड़ा भारी करने के लिये कथित सज्जादगी वाले लोगो की मार्फ़त अन्य लोग भी खिदमत के नाम पर सज्जादगी कर श्रद्धालुओ का शोषण व उत्पीड़न कर ने में लगे हुवे है।

उत्तराखंड